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कविता संग्रह

महाकाली चामुन्डा देवियेभ्यो नमः

दीपक पंत

टूटी हुई आस को

घबराई हुई स्वास को

तार तार विश्वास को

थके हारे , निराश को

क्या चाहिए ??

तू चाहिए

तेरा सहारा , तेरा आसरा चाहिए ।।

महाकाली चामुन्डा देवियेभ्यो नमः

आज शुक्रगुज़ार हुआ जाए

दीपक पंत

आज शुक्रगुजार हुआ जाए

आज बलिहार हुआ जाए

जो साथ चले उसे घर तक छोड़ा जाए

जो पलट जाए उसे लौटाया जाए

जो फिर भी ना पलटे

उसका इंतजार आखिरी बार किया जाए

चलिए आज कुछ पल अकेले बैठा जाए

कैसी कटी अब तक, संज्ञान लिया जाए।

आज शुक्रगुज़ार हुआ जाए

महिलाएं एवं उनकी अनकही शक्तियां

हिमांशु पंत

एक अरसे से महिलाओं पर शोध करना चाहता हूं मैं,

कहा से इतनी शक्ति आ जाती है, जानना चाहता हूं मैं।

 

किसी के बच्चे, पति, सास ससुर करते हैं परेशान,

किसी का जल जंगल जमीन में बीत जाता है जीवन,

कोई सुबह के खाने से शाम के खाने तक व्यस्त है,

कोई बीमारी के बोझ के बाद भी काम करने में मस्त है।

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जीवन के रंग

हिमांशु पंत

मैं, एक आम सा इंसान आज कुछ बीती हुई बातें सोच रहा हूं।

कैसे समय के साथ चीजें बदल रही हैं, देख रहा हूं।

अपने छोटे से घर के छोटे से आंगन में खेलते हुए खुद को देख रहा हूं।

सुबह उठ कर, खाली बर्तन पकड़, खुद को धारे में पानी लेने जाते हुए देख रहा हूं।

तीन भाइयों के बीच सबसे छोटा होने का फायदा उठाते हुए खुद को देख रहा हूं।

घर, स्कूल के प्यार के बीच अपनी पढ़ाई को पूरा होते हुए देख रहा हूं।

जीवन के रंग

पहाड़  और संघर्ष

दीपक पंत

हाड़ मांस की काया लेकर धरती पत्थर चीरना होगा

बैठ कर खाना नसीब नहीं काटते बोते खाना होगा

 

पीठ पर लकड़ी पत्थर ढोकर फटे कपड़ों की चप्पल पहनकर

जिन्होंने जीवन का संघर्ष सीखाया उनसे लिया लौटाना होगा

 

सड़क से पहचान नहीं दुपहिया चौपहिया का ज्ञान नहीं

गलियारों का हाथ पकड़कर पैदल ही रास्ता बनाना होगा

 

स्वर्ग की परिकल्पना कर स्वर्ग सिधार गए

उन दूतों को उनकी सौंपी विरासत संभाले ब्याज सहित लौटाना होगा 

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