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आज शुक्रगुज़ार हुआ जाए

आज शुक्रगुज़ार हुआ जाए

चलिए आज कुछ पल एकांत में बैठा जाए

कैसी कटी अब तक , थोड़ा संज्ञान लिया जाए

जय पराजय , सफलता विफलता के किस्से कभी और ,

आज गुजरे कुछ हल्के पलों को तवज्जो दी जाए।।

हल्के पलों के सूत्रधार अक्सर भारी लोग होते हैं

इसलिए शुरुआत, भारी भरकम जिगरे वाले मित्रों से की जाए

परिवार के बाहर, ईश्वर के दिए इस ऐच्छिक परिवार की जड़ टटोली जाए

बचपन से बुढ़ापे तक साथ इस

अटूट अनोखे रिश्ते को

सिर से, ह्रदय से लगाया जाए 

हर तरह की गलत सही शिक्षा देने वाले

इस रिश्ते की कुछ कुछ बात याद की जाए

हर एक लम्हे को याद कर के थोड़ा हंसा , थोड़ा मुस्कुराया जाए

तो शुरुआत स्कूल के रास्ते पर उस इंतजार से की जाए

दोस्त स्कूल आए तो हाजिरी दर्ज हो वरना

आज गैर हाजिर रहा जाए

किसी का लुट आग लगाना हो ,

स्कूल जाते वक्त आधे रास्ते छिप जाना हो ,

बीड़ी का ठून जला के फूंकना हो

फल , ककड़ी चोरना हो

हर छोटे बड़े कर्म काण्ड में दोस्त का भरपूर साथ दिया जाए

चाहे लकड़ी से मार पड़े या पत्थर से ,

विद्या कसम के अलावा किसी और दंड से समझौता ना किया जाए ।।

स्कूल खत्म होते ही दोस्तों का इधर उधर बिखर जाना

मिश्रित भावनाओं के साथ स्वीकार कर लिया जाए।

बचपन से जवानी में बदलते इस स्वरुप को सहज स्वीकारा जाए

नए रास्तों पर नए नए दोस्तों के साथ कदम बढ़ाया जाए

कर्म काण्ड में भागीदारी अब भी बराबर हो विशेष ध्यान रखा जाए

बचपन वाले कर्म काण्ड अब बौने लगें इसे प्रकृति का बदलाव समझा जाए

कुछ लड़ाई में , कुछ प्यार में , कुछ तकरार में

कुछ सहयोग में , कुछ विरोध में , कुछ मान में

कुछ अपमान में , कुछ स्वार्थ में , कुछ परमार्थ में

सहयोगी इन सभी सदस्यों का आभार माना जाए

 

मीठी है कहकर पिलाई गई उस पहली चुस्की वाले की

चतुराई को कमतर न आंका जाए

तुझे देख कर हंस रही थी बोलने वाले के झूठ को

सोच समझकर समझा जाए

तेरे साथ तेरा भाई है बोलने वाले की हिम्मत को

आंख मूंद कर ह्रदय में रखा जाए

ऐसे हजारों लाखों छुटपुट किस्सों को जतन से सहेज कर रखा जाए

आज शुक्रगुजार हुआ जाए आज बलिहार हुआ जाए

जो साथ चले उसे घर तक छोड़ा जाए

जो पलट जाए उसे लौटाया जाए

जो फिर भी ना पलटे उसका इंतजार आखिरी बार किया जाए

चलिए आज कुछ पल अकेले बैठा जाए

कैसी कटी अब तक संज्ञान लिया जाए।।

दीपक पंत

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