जीवन के रंग
मैं, एक आम सा इंसान आज कुछ बीती हुई बातें सोच रहा हूं।
कैसे समय के साथ चीजें बदल रही हैं, देख रहा हूं।
अपने छोटे से घर के छोटे से आंगन में खेलते हुए खुद को देख रहा हूं।
सुबह उठ कर, खाली बर्तन पकड़, खुद को धारे में पानी लेने जाते हुए देख रहा हूं।
तीन भाइयों के बीच सबसे छोटा होने का फायदा उठाते हुए खुद को देख रहा हूं।
घर, स्कूल के प्यार के बीच अपनी पढ़ाई को पूरा होते हुए देख रहा हूं।
अब खुद को घर, गांव से दूर, कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए जाते देख रहा हूं।
मां की आंखों में आंसू देख खुद को भावुक महसूस कर रहा हूं।
लेकिन मन के किसी कोने में बाहर निकलने की खुशी को उस भावुकता को दबाता हुआ महसूस करता हूं।
कॉलेज में हर मोड़ पर मेरी मदद करते हुए लोगों के बारे में सोच कर नतमस्तक सा हो जाता हूं।
बदलते समय के साथ अपने कॉलेज के माहौल से बाहर निकलता हुआ देख शांत सा हो जाता हूं।
अब जीवन का एक संघर्ष शुरू होने वाला है, यह देख कमर कस कर तैयारी करता देख रहा हूं।
अपने दिल में फौज के लिए प्यार सोच वहीं बसने का मन करता है,
लेकिन अपनी किस्मत पर कुछ आंसू बहा कर कुछ और तैयारी शुरू करता देख रहा हूं।
अब अपने आप को पहली नौकरी मिलने की खुशियां घर पर मनाते हुए देख रहा हूं।
लेकिन अंदर ही अंदर मां के दिल में एक डर को पैदा होते हुए देख रहा हूं।
चाहता हूं कि अभी मां को कह दूं कि मां, तुम्हारी सारी अच्छी सीखें मेरे साथ हैं।
तुम्हारे किए हुए सारे परोपकार भगवान ने देखे हैं और वो मेरी मदद कर रहे हैं।
धीरे धीरे अपने आप को एक सफल इंसान के रूप में देख रहा हूं।
सब कुछ पास में होते हुए भी कुछ न कुछ छूटा सा महसूस कर रहा हूं।
लग रहा है कि जैसे बहुत कुछ छोड़ कर मैं यहां आ गया हूं।
अब सोचता हूं कि आखिर क्या मिलता है सफलता की सीढ़ी चढ़ कर,
जब आपको अपनी पसंद की चीजें छोड़ कर ये सब करना पड़ता है।
जब आपको मां की आंखों के आंसुओ को न देख कर अपना भविष्य देखना होता है।