पहाड़ और संघर्ष

हाड़ मांस की काया लेकर धरती पत्थर चीरना होगा
बैठ कर खाना नसीब नहीं काटते बोते खाना होगा
पीठ पर लकड़ी पत्थर ढोकर फटे कपड़ों की चप्पल पहनकर
जिन्होंने जीवन का संघर्ष सीखाया उनसे लिया लौटाना होगा
सड़क से पहचान नहीं दुपहिया चौपहिया का ज्ञान नहीं
गलियारों का हाथ पकड़कर पैदल ही रास्ता बनाना होगा
स्वर्ग की परिकल्पना कर स्वर्ग सिधार गए
उन दूतों को उनकी सौंपी विरासत संभाले ब्याज सहित लौटाना होगा
अंतर्मन में द्वंद कई क्यों और कैसे प्रश्न कई
अंतर्मन बहला फुसला कर बैग पकड़ फिर मुड़ना होगा
घर से दूर दूर के इस घर में अपनों से दूर,
इन नए अपनों में आने वाली पीढ़ी के हितकर साधन, संसाधन समेटना होगा
होली वाले वो गीत नहीं दीवाली वाली वो रात नहीं
रंग बिरंगे लोगों के बीच चकाचौंध इन बाजारों के बीच
अपने हिस्से के रंग समेटने रात के साथ जागना होगा
नित नए आयाम रचाते नित नया भारत बनाते कर्तव्य पथ
पर आगे बढ़ते अपने हुनर पर नित इतराते अपनी धरा पर आसरा देते
इस देश का एक एक कर्ज अपने हिस्से की हिस्सेदारी से ब्याज सहित लौटाना होगा